सांचोर में आंजना समाज सांचोर का प्रतिभा सम्मान समारोह संपन्न देवजी पटेल के मुख्य आतिथ्य में मोतीराम की अध्यक्षा में सम्पन हुआ। इस मौके पर सांचोर क्षेत्र के समस्त आंजना समाज मौजूद थ।
इस समारोह में आंजना समाज के सभी नवनियुक्त कर्मचारियों को सम्मानित किया गया इसके अलावा बोर्ड कक्षों में अग्र स्थान प्राप्त करने वाले विधार्थियों को भी सम्मान दिया ग्य।
समाज में विभिन्न बोर्ड कक्षाओ में प्रथम,द्वित्य,त्रित्य,स्थान प्राप्त करने वालो को क्रमश २ १ १ ० ,१ ५ ० ० ,व् १ १ ० ० रु का पुरष्कार दिया गया इसके अलावा १ ० वि बोर्ड में ८ ० % से अधिक वालो को रुपाराम चौधरी की और से १ ० ० ० - १ ० ० ० रु तथा रतन चौधरी की और से ५ ० ० -५ ० ० की राशी दी गयी । इस मौके पर समाज के संरक्षक रुपाराम चौधरी कान्टोल ने समाज पर फीकी प्रतिकिर्या कर समाज की वर्तमान स्थति से अवगत करवाया ।इसि बिच रतन चौधरी ने श्री राजाराम शिक्षण संसथान को कंप्यूटर सेट भेट किया ।
इस मौके पर सांसद देवजी पटेल ने समाज पर प्रतिक्रिया कर शुर्खिया बटोरी।
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| सम्मानित होते हुए भरत चौधरी टीटोप |
जीवन-परिचय
महंत श्री श्री १००८ संत शिरोमणि श्री किशनाराम जी महाराज शिकारपुरा (लूनी) पीठाधीश महंत श्री किशनाराम जी महाराज का ननिहाल रोहिचा (कल्ला) में भाखररामजी कुरड के यंहा माता श्रीमती चुन्नीबाई की कोख से दिनांक 20 अक्टूम्बर, १९३० को जन्म हुआ |
किशनारामजी के पिताजी का नाम वजारामजी ओड सुपुत्र श्री विरमारामजी हैं जो (लूनी) के रहने वाले हैं |
सात वर्ष की अवस्था में किशानारामजी के स्वास्थ्य में दिनोदिन गिरावट आती गयी, इस कारण वजारामजी किशनारामजी को शिकारपुरा आश्रम लेकर जाते और समाधी की परिक्रमा देकर वापस घर लोट आते, इसी बिच वजारामजी की भेंट महंत श्री देवारामजी महाराज के साथ हुयी, जिन्होंने किशनारामजी को अपने सानिध्य में रखने की इच्छा जाहिर की, तब वजारामजी ने अपने परिवार वालो से सलाह-मशविरा करके देवारामजी महाराज के सानिध्य में शिकारपुरा आश्रम को सुदुर्प कर दिया|
फिर देवारामजी महाराज के सानिध्य में किशनारामजी की प्राथमिक शिक्षा आरम्भ हुयी तथा साथ ही धर्म और समाज सम्बन्धी जानकारिया भी देते रहे| प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद जोधपुर से स्नातर की शिक्षा प्राप्त की तथा साथ ही आयुर्वेद शिक्षा (रजि. संख्या ६४६४ ए) का भी ज्ञान प्राप्त किया | शिक्षा ग्रहण करने के बाद महंत श्री देवारामजी ने शिकारपुरा आश्रम की जिम्मेदारी श्री किशनाराम जी को सॉप दी |
तत्पक्षात अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए महंत श्री देवारामजी के देवलोक गमन के बाद आषाढ़ वद ४ बुधवार विक्रम संवत २०५३ को शिकारपुरा आश्रम के गादीपति बने | पीठाधीश बनने के बाद महंत श्री किशनाराम जी महाराज ने अपने गुरु के बतलाये हुए रास्ते पर चलते हुए समाज के चहुमुखी विकास के लिए दिन-रात एक कर दिया| किशनारामजी हँसमुख एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनि थे | वे गरीब जनता की निशुल्क तथा सेवा भाव करतेसे उपचार करते थे | किशनारामजी ने अपना पूरा जीवन जन सेवा और गौ सेवा में समर्पित कर दिया |
आश्रम में आने वाले दर्शनार्थियों में छोटे से बड़े तक के लिए भोजन की निशुल्क वयवस्था वर्षो से चल रही हैं, महंत श्री का कहना था की मंदिर में बनाने वाली प्रसाद आने वाले हर श्रदालुओ को मिलनी चाहिए | इसलिए आश्रम का भोजनालय २४ घंटे खुला रहता हैं | यह व्यवस्था बिना किसी भेदभाव अनवरत चल रही हैं, इसलिए हर जाती धर्म के हजारो भक्त आपके अनुयायी हैं |
किशनारामजी महाराज ने समाज के चहुमुखी विकास के लिए सर्वप्रथम बालिका शिक्षा एवं मृत्युभोज पर ज्यादा जोर दिया, शिक्षण संस्थानों एवं छात्रावासों का निर्माण करवाया | किशनारामजी के प्रयास से राजारामजी आश्रम, शिकारपुरा में श्री राधेकृष्ण मंदिर का निर्माण, जोधपुर के पाल रोड में संत श्री देवारामजी छात्रावास एवं कॉलेज का निर्माण, आहोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, जालोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, दिल्ली में शिक्षण संस्थान के लिए भूमि की खरीद, हरिद्वार एवं रामदेवरा में धर्मशाला का निर्माण, माउंट आबू में श्री राजारामजी छात्रावास एवं शिक्षण संस्थान का निर्माण इत्यादि अनेक कार्य संपन किये | तथा कल्याणपुर में श्री राजारामजी चिकित्सालय का शिलान्यास भी किशानारामजी के कर कमलो द्वारा हुआ | वर्तमान में राजस्थान में ६०, गुजरात में ४८, मद्यप्रदेश में ३५, कर्नाटका में १०, महारास्त्र में ६, तमिलनाडु में ४ छात्रावास का निर्माण हुआ जो एक रिकॉर्ड हैं |
इसी दरमियान किशनारामजी ने कलबी आंजना समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए अखिल भारतीय आंजना (पटेल) समाज महासभा का गठन किया | जिसके जरिये महंत जी ने समूचे भारत में फैले हुए आंजना समाज को एक नयी दिशा प्रदान की, जिसके फलस्वरूप आज समाज की छवि रास्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं | महंत श्री किशनारामजी ने हमेशा समाज के लोगो को सावित्व एवं संस्कारपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी तथा बाल-विवाह पर रोक एवं बालिका शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया | किशनारामजी समाज में समाज सुधारक के नाम से भी जाने जाते हैं |
आंजना समाज के लिए किशनारामजी ने तन-मन-धन से प्रयास करके समाज को एक उन्नतिशील समाज की दौड़ में शामिल करके ७७ वर्ष की अवस्था में दिनांक ६.१.२००७ को परमात्मा में लीन हो गए |
जीवन परिचय
श्री राजारामजी महाराज के समाधि के बाद आपके प्रधान शिष्य श्री देवारामजी महाराज को आपके उपदेशो का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से आपकी गद्दी पर बिठाया और महंत श्री की उपाधि से विभूषित किया गया ! महंत श्री देवरामजी ने अपने गुरुभाई श्री लच्छीरामजी ,श्री गणेशरामजी और श्री शंभुरामजी के साथ भ्रमण करते हुए श्री राजारामजी महाराज के उपदेशो को संसारियों तक पहुँचाने का प्रयत्न करने में अपना जीवन लगा दिया ! श्री गुरुदेव राजारामजी के शुरू किये हुए काम को पूरा करने में अपना जीवन लगाकर अथक प्रयत्न करते रहे ! जिसके लिए आंजना समाज सदा आपका ऋणी रहेगा !
श्री राजारामजी महाराज के समाधि के बाद आपके प्रधान शिष्य श्री देवारामजी महाराज को आपके उपदेशो का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से आपकी गद्दी पर बिठाया और महंत श्री की उपाधि से विभूषित किया गया ! महंत श्री देवरामजी ने अपने गुरुभाई श्री लच्छीरामजी ,श्री गणेशरामजी और श्री शंभुरामजी के साथ भ्रमण करते हुए श्री राजारामजी महाराज के उपदेशो को संसारियों तक पहुँचाने का प्रयत्न करने में अपना जीवन लगा दिया ! श्री गुरुदेव राजारामजी के शुरू किये हुए काम को पूरा करने में अपना जीवन लगाकर अथक प्रयत्न करते रहे ! जिसके लिए आंजना समाज सदा आपका ऋणी रहेगा !
जीवन-परिचय
श्री राजारामजी महाराज जीवन परिचय श्री राजारामजी महाराज का जन्म चैत्र शुल्क ९ संवत १९३९ को, जोधपुर तहसील के गाँव शिकारपुरा में, अंजना कलबी वंश की सिह खांप में एक गरीब किसान के घर हुआ था | जिस समय राजारामजी की आयु लगभग १० वर्ष थी तक राजारामजी के पिता श्री हरिरामजी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद माता श्रीमती मोतीबाई का स्वर्गवास हो गया |
माता-पिता के बाद राजारामजी बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी नंगे सन्यासियों की जमात में चले गए और आप कुछ समय तक राजारामजी अपने चाचा श्री थानारामजी व कुछ समय तक अपने मामा श्री मादारामजी भूरिया, गाँव धान्धिया के पास रहने लगे | बाद में शिकारपुरा के रबारियो सांडिया, रोटी कपडे के बदले एक साल तक चराई और गाँव की गांये भी बिना हाध में लाठी लिए नंगे पाँव २ साल तक राम रटते चराई |
गाँव की गवाली छोड़ने के बाद राजारामजी ने गाँव के ठाकुर के घर १२ रोटियां प्रतिदिन व कपड़ो के बदले हाली का काम संभाल लिया | इस समय राजारामजी के होंठ केवल इश्वर के नाम रटने में ही हिला करते थे | श्री राजारामजी अपने भोजन का आधा भाग नियमित रूप से कुत्तों को डालते थे | जिसकी शिकायत ठाकुर से होने पर १२ रोटियों के स्थान पर ६ रोटिया ही देने लगे, फिर ६ मे से ३ रोटिया महाराज, कुत्तों को डालने लगे, तो ३ में से 1 रोटी ही प्रतिदिन भेजना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी भगवन अपने खाने का आधा हिस्सा कुत्तों को डालते थे | इस प्रकार की ईश्वरीय भक्ति और दानशील स्वभाव से प्रभावित होकर देव भारती नाम के एक पहुंचवान बाबाजी ने एक दिन श्री राजारामजी को अपना सच्चा सेवक समझकर अपने पास बुलाया और अपनी रिद्धि-सिद्धि श्री राजारामजी को देकर उन बाबाजी ने जीवित समाधी ले ली | उस दिन ठाकुर ने विचार किया की राजारामजी को वास्तव में एक रोटी प्रतिदिन कम ही हैं और किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए ये काफी नहीं हैं अतः ठाकुर ने भोजन की मात्रा फिर से निश्चित करने के उद्धेश्य से उन्हें अपने घर बुलाया | शाम के समय श्री राजाराम जी इश्वर का नाम लेकर ठाकुर के यहाँ भोजन करने गए | श्री राजारामजी ने बातों ही बातों में ७.५ किलो आटे की रोटिया आरोग ली पर आपको भूख मिटने का आभास ही नहीं हुआ | ठाकुर और उनकी की पत्नी यह देख अचरज करने लगे | उसी दिन शाम से राजारामजी हाली का काम ठाकुर को सोंपकर तालाब पर जोगमाया के मंदिर में आकर राम नाम रटने लगे | उधर गाँव के लोगो को चमत्कार का समाचार मिलने पर उनके दर्शनों के लिए ताँता बंध गया | दुसरे दिन राजारामजी ने द्वारिका का तीर्थ करने का विचार किया और दंडवत करते हुए द्वारिका रवाना हो गए | ५ दिनों में शिकारपुरा से पारलू पहुंचे और एक पीपल के पेड़ के नीचे हजारो नर-नारियो के बिच अपना आसन जमाया और उनके बिच से एकाएक इस प्रकार से गायब हुए की किसी को पता ही नहीं लगा |
श्री राजारामजी १० माह की द्वारिका तीर्थ यात्रा करके शिकारपुरा में जोगमाया के मंदिर में प्रकट हुए और अद्भुत चमत्कारी बाते करने लगे, जिन पर विश्वास कर लोग उनकी पूजा करने लग गए | राजारामजी को लोग जब अधिक परेशान करने लग गये तो ६ मास का मोन रख लिया | जब राजारामजी ने शिवरात्री के दिन मोन खोला तक लगभग ८०००० वहां उपस्थित लोगो को व्याखान दिया और अनेक चमत्कार बताये जिनका वर्णन जीवन चरित्र नामक पुस्तक में विस्तार से किया गया हैं |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे २५० क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और दो साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं |
श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्यु भोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |
राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये ओर समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४ संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे २५० क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और दो साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं |
श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्यु भोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |
राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये ओर समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४ संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे २५० क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और दो साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं |
श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्यु भोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |
राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये ओर समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४ संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे २५० क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और दो साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं |
श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्यु भोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |
राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये ओर समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४ संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |

माता तो सर्वोच्च है, महिमा अगम अपार!
माँ के गर्भ से ही यहाँ, प्रकट हुए अवतार!!
माँ की महत्ता तो मनुज, कभी न जानी जाय!
माँ का ऋण सबसे बड़ा, कैसे मनुज चुकाय!!
मात-पिता भगवान-से, करो भक्ति भरपूर!
मात-पिता यदि रुष्ट हों, ईश समझलो दूर!!
पिता दिखाए राह नित, दे जीवन का दान!
मान पिता को दे नहीं, अधम पुत्र को जान!!
रोम-रोम में माँ रहे, नाम जपे हर साँस!
सेवा कर माँ की सदा, पूरी होगी आस!!
माँ प्रसन्न तो प्रभु मिलें, सध जाएँ सब काम!
पिता के कारण जगत में, मिले मनुज को नाम!!
मात-पिता का सुख सदा, चाहा श्रवण कुमार!
मात-पिता के भक्त को, पूजे सब संसार!!
माँ के सुख में सुख समझ, मान मोद को मोद!
सारा जग मिल जाएगा, मिले जो माँ की गोद!!
माँ के चरणों में मिलें, सब तीरथ,सब धाम!
जिसने माँ को दुःख दिए, जग में मरा अनाम!!
माँ है ईश्वर से बड़ी, महिमावान अनंत!
माँ रूठे पतझड़ समझ, माँ खुश, मान वसंत!!
व्याख्यान - Positive V/S Negtive
सारे पैरंट्स की चाहत होती है कि वे अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दें। वे कोशिश भी करते हैं, फिर भी ज्यादातर पैरंट्स बच्चों के बिहेवियर और परफॉर्मेंस से खुश नहीं होते। उन्हें अक्सर शिकायत करते सुना जा सकता है कि बच्चे ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया... इसके लिए काफी हद तक पैरंट्स ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि अक्सर किस हालात में क्या कदम उठाना है, यह वे तय ही नहीं कर पाते। किस स्थिति में पैरंट्स को क्या करना चाहिए और क्यों :
1. बच्चा स्कूल जाने/पढ़ाई करने से बचे तो...
क्या करते हैं पैरंट्स पैरंट्स बच्चे पर गुस्सा करते हैं। मां कहती हैं कि तुमसे बात नहीं करूंगी। पापा कहते हैं कि बाहर खाने खिलाने नहीं ले जाऊंगा, खिलौना खरीदकर नहीं दूंगा। थोड़ा बड़ा बच्चा है तो पैरंट्स उससे कहते हैं कि कंप्यूटर वापस कर, मोबाइल वापस कर। तुम बेकार हो, तुम बेवकूफ हो। अपने भाई/बहन को देखो, वह पढ़ने में कितना अच्छा है और तुम बुद्धू। कभी-कभार थप्पड़ भी मार देते हैं।
क्या करना चाहिए
- वजह जानने की कोशिश करें कि वह पढ़ने से क्यों बच रहा है? कई वजहें हो सकती हैं, मसलन उसका आईक्यू लेवल कम हो सकता है, कोई टीचर नापसंद हो सकता है, वह उस वक्त नहीं बाद में पढ़ना चाहता हो आदि।
- बच्चा स्कूल जाने लगे तो उसके साथ बैठकर डिस्कस करें कि कितने दिन स्कूल जाना है, कितनी देर पढ़ना है आदि। इससे बच्चे को क्लियर रहेगा कि उसे स्कूल जाना है। बहाना नहीं चलेगा। उसे यह भी बताएं कि स्कूल में दोस्त मिलेंगे। उनके साथ खेलेंगे।
- अगर स्कूल से उदास लौटता है तो प्यार से पूछें कि क्या बात है? क्या टीचर ने डांटा या साथियों से लड़ाई हुई। अगर बच्चा बताए कि फलां टीचर या बच्चा परेशान करता है तो उससे कहें कि हम स्कूल जाकर बात करेंगे। स्कूल जाकर बात करें भी लेकिन सीधे टीचर को दोष न दें।
- जो बच्चे हाइपरऐक्टिव होते हैं, उन्हें अक्सर टीचर शैतान मानकर इग्नोर करने लगती हैं। ऐसे में टीचर से रिक्वेस्ट करें कि बच्चे को ऐक्टिविटीज में शामिल करें और उसे मॉनिटर जैसी जिम्मेदारी दें। इससे वह जिम्मेदार बनता है।
- जिस वक्त वह नहीं पढ़ना चाहता, उस वक्त उसे मजबूर न करें, वरना वह जिद्दी हो जाएगा और पढ़ाई से बचने लगेगा। थोड़ी देर बाद फिर से पढ़ने को कहें।
- उसके पास बैठें और उसकी पढ़ाई में खुद को शामिल करें। उससे पूछें कि आज क्लास में क्या हुआ? बच्चा थोड़ा बड़ा है तो आप उससे कह सकते हैं कि तुम मुझे यह चीज सिखाओ क्योंकि यह तुम्हें अच्छी तरह आता है। वह खुश होकर सिखाएगा और साथ ही साथ खुद भी सीखेगा।
- छोटे बच्चों को किस्से-कहानियों के रूप में काफी कुछ सिखा सकते हैं। उसे बातों-बातों और खेल-खेल में सिखाएं जैसे किचन में आलू गिनवाएं, बिंदी से डिजाइन बनवाएं आदि। पढ़ाई को थोड़ा दिलचस्प तरीके से पेश करें। हर बच्चे की पसंद-नापसंद होती है। उसकी पसंद के सब्जेक्ट पर ज्यादा फोकस करें।
- कभी-कभी उसके फ्रेंड्स को घर बुलाकर उनको साथ पढ़ने बैठाएं। इससे पढ़ाई में उसका मन लगेगा।
- बच्चा आप पर चीखे-चिल्लाए तो भी आप उस पर चिल्लाएं नहीं। उस वक्त छोड़ दें, लेकिन खुद को पूरी तरह नॉर्मल भी न दिखाएं, वरना वह सोचेगा कि वह कुछ भी करेगा, आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बाद में जब उसका गुस्सा शांत हो जाए तो बैठकर बात करें कि इस तरह बात करना आपको बुरा लगा और इससे उसके दोस्त, टीचर सभी उसे बुरा बच्चा मानेंगे।
- उसे टाल दें। इसे लेकर बार-बार कुरेदे नहीं। अगर बार-बार बोलेंगे तो उसकी ईगो हर्ट होगी। हां, कहानी के जरिए बता सकते हैं कि एक बच्चा था, जो गंदी बातें करता था। सबने उससे दोस्ती खत्म कर ली आदि।
- बच्चे के सामने गाली या खराब भाषा का इस्तेमाल न करें। वह जो सुनेगा, वही सीखेगा। उसे बताएं कि ऐसी भाषा तो गलत लोग बोलते हैं। उनका बैकग्राउंड और वर्क कल्चर बिल्कुल अलग है और तुम्हारा बिल्कुल अलग।
- पांच-छह साल से बड़ा बच्चा जान-बूझकर पैरंट्स की मानहानि करने और खुद को पावरफुल दिखाने के लिए बोलता है कि आप अच्छे नहीं हैं। पैरंट्स भी बहुत आसानी से हर्ट हो जाते हैं। इसके बजाय आप कह सकते हैं कि तुम इतने अनलकी हो कि तुम्हारी मां गंदी है। इससे उसका पावरफुल वाला अहसास खत्म होगा।
- चोरी करने पर सजा जरूर दें, लेकिन सजा मार-पीट के रूप में नहीं बल्कि बच्चे को पसंदीदा प्रोग्राम नहीं देखने देना, उसे आउटिंग पर नहीं ले जाना, खेलने नहीं देना जैसी सजा दे सकते हैं। जो चीज उसे पसंद है, उसे कुछ देर के लिए उससे दूर कर दें।
- बच्चे का बैग रेग्युलर चेक करें, लेकिन ऐसा उसके सामने न करें। उसमें कोई भी नई चीज नजर आए तो पूछें कि कहां से आई? बच्चा झूठ बोले तो प्यार से पूछें। उसकी बेइज्जती न करें, न ही उसके साथ मारपीट करें। चीज लौटाने को कहें लेकिन पूरी क्लास के सामने माफी न मंगवाएं। बच्चा अगर पांच साल से बड़ा है, तब तो बिल्कुल नहीं। वह क्लास के सामने बोल सकता है कि यह चीज मुझे मिल गई थी।
- उसे अकेले में सख्ती से जरूर समझाएं कि उसने गलत किया। चोरी बुरी बात है। अगली बार ऐसा नहीं होना चाहिए।
- झूठी पनाह नहीं देनी चाहिए। अगर कोई कहता है कि आपके बच्चे ने चोरी की है तो यह न कहें कि वह ऐसा नहीं कर सकता। इससे उसे शह मिलती है। कहें कि हम अकेले में पूछेंगे। सबके सामने न पूछें लेकिन अकेले में पूरी इंक्वायरी करें।
- बच्चे को मोरल एजुकेशन दें। उसे बताएं कि आप कोई चीज उठाकर लाएंगे तो आप टेंशन में रहेंगे कि कोई देख न ले। इस टेंशन से बचने का अच्छा तरीका है कि चोरी न की जाए।
- पैरंट्स की जिम्मेदारी है कि वे बच्चे को जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध कराएं। इससे उसका झुकाव चोरी की ओर नहीं होगा।
क्या करना चाहिए
- बच्चा झूठ बोले तो ओवर-रिएक्ट न करें और सबसे सामने न डांटें। न ही उसे सही-गलत का पाठ पढ़ाएं। इसके बजाय उसे उदाहरण देकर उस काम के नेगेटिव पक्ष बताएं। उदाहरण में खुद को सामने रखें - मसलन, मैं जब छोटा था तो क्लास बंक करता था और घर में झूठ बोलता था लेकिन बाद में मैं पढ़ाई में पीछे रह गया या बाद में ढेर सारा काम करना पड़ता था। साथ ही, झूठ बोलने की टेंशन अलग होती थी। इस तरह से बात करने से वह खुद को कठघरे में खड़ा महसूस नहीं करेगा।
- खुद में सच सुनने की हिम्मत पैदा करें। हालात का सामना करें। घर में ऐसा माहौल रखें कि बच्चा बड़ी से बड़ी गलती के बारे में बताने से डरे नहीं। बच्चा झूठ तभी बोलता है, जब उसे मालूम होता है कि सच कोई सुनेगा नहीं। उसके भरोसा दिलाएं कि उसकी गलती माफ हो सकती है।
- बच्चा झूठ बोलना मां-बाप से ही सीखता है, जबकि 95 फीसदी मामलों में झूठ बोले बिना काम चल सकता है।
क्या करना चाहिए
- बच्चे को हमेशा रोकें-टोकें नहीं। हर बात के लिए हां करना गलत है तो न करना भी सही नहीं है। 'डोंट डू दिस, डोंट टू दैट' का रवैया सही नहीं है। जो बात मानने वाली है, उसे मान लेना चाहिए। अगर उसकी कुछ बातें मान ली जाएंगी तो वह जिद कम करेगा। मसलन कभी-कभी खिलौना दिलाना, उसकी पसंद की चीजें खिलाना जैसी बातें मान सकते हैं।
- ध्यान रहे कि अगर एक बार इनकार कर दिया तो फिर बच्चे की जिद के सामने झुककर हां न करें। बच्चे को अगर यह मालूम हो कि मां या पापा की 'हां' का मतलब 'हां' और 'ना' का मतलब 'ना' है तो वह जिद नहीं करेगा।
- किसी भी मसले पर मां-पापा दोनों की सहमति होनी जरूरी है। ऐसा न हो कि एक इनकार करे और दूसरा उस बात के लिए मान जाए। अगर एक सख्त है और दूसरा नरम है तो बच्चा फायदा उठाता है। जो बात नहीं माननी, उसके लिए बिल्कुल साफ इनकार करें, जोर देकर करें और दोनों मिलकर करें। अगर घर में बाकी लोग हैं तो वे भी बच्चे की तरफदारी न करें।
- उसे कमजोर बनकर न दिखाएं, न ही उसके सामने रोएं। इससे बच्चा ब्लैकमेलिंग सीख लेता है और बार-बार इस हथियार का इस्तेमाल करने लगता है।
- यह न कहें कि अगर तुम यह काम करोगे तो हम वैसा करेंगे, मसलन अगर तुम होमवर्क पूरा करोगे तो आइसक्रीम खाने चलेंगे। उससे कहें कि पहले होमवर्क पूरा कर लो, फिर आइसक्रीम खाने चलेंगे। इससे उसे पता रहेगा कि अपना काम करना जरूरी है। ऐसे में फिजूल जिद बेकार है।
- बहस की बजाय कई बार समझौता कर सकते हैं कि चलो तुम थोड़ी देर कंप्यूटर पर गेम्स खेल लो और फिर थोड़ी देर पढ़ाई कर लेना। इससे बच्चा दुनिया के साथ भी नेगोशिएट करना सीख जाता है। हालांकि ऐसा हर बार न हो, वरना बच्चे में ज्यादा चालाकी आ जाती है।
- यह भी देखें कि बच्चा जिद कर रहा है या आप जिद कर रहे हैं क्योंकि कई बार पैरंट्स भी बच्चे की किसी बात को लेकर ईगो इशू बना लेते हैं। यह गलत है।
- बच्चे से रिमोट छीनकर बंद न करें और न ही अपनी पसंद का प्रोग्राम लगाकर देखने बैठ जाएं। अपना टीवी देखना कम करें। अक्सर बच्चे स्कूल से आते हैं तो मां टीवी देखती मिलती है।
- बच्चे की पसंद के हर प्रोग्राम में कमी न निकालें कि यह खराब है। उससे पूछें कि वह जो देख रहा है, उससे उसने क्या सीखा और हम भी वह प्रोग्राम देखेंगे।
- अखबार देखें और बच्चे के साथ बैठकर तय करें कि वह कितने बजे, कौन-सा प्रोग्राम देखेगा और आप कौन-सा प्रोग्राम देखेंगे। इससे बच्चा सिलेक्टिव हो जाता है।
- उसके कमरे में टाइम टेबल लगा दें कि वह किस वक्त टीवी देखेगा और कब गेम्स खेलेगा? अगर वह एक दिन ज्यादा देखता है तो निशान लगा दें और अगले दिन कटौती कर दें।
- विडियो गेम्स आदि के लिए हफ्ते में कोई खास दिन या वक्त तय करें।
- आप खुद भी हर वक्त फोन पर बिजी न रहें, वरना बच्चे से इनकार करना मुश्किल होगा। हां, उसे मोबाइल देते वक्त ही मोबाइल बिल की लिमिट तय करें कि महीने में उसे इतने रुपए का ही मोबाइल खर्च मिलेगा। दूसरों को दिखाने के लिए उसे महंगा फोन न दिलाएं।
- उसे बताएं कि ज्यादा लंबी बातचीत से शरीर को क्या नुकसान हो सकते हैं? इतना वक्त खराब करने से पढ़ाई का नुकसान हो सकता है आदि। इसी तरह बताएं कि चैटिंग करें लेकिन बाद में।
- अकेले में बच्चे का मोबाइल चेक करें। उसमें गलत एमएमएस नजर आएं या ज्यादातर मेसेज डिलीट मिलें तो कुछ गड़बड़ हो सकती है।
- कंप्यूटर ऐसी जगह पर रखें, जहां से उस पर सबकी निगाह पड़ती हो। इससे पता चलता रहेगा कि वह किस वेबसाइट पर क्या कर रहा है। इंटरनेट की हिस्ट्री चेक करें। कंप्यूटर पर बच्चे को फोटोशॉप या पेंट आदि सिखाएं। इससे वह कंप्यूटर का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकेगा।
- अगर पता लग जाए कि बच्चे में बुरी आदतें पड़ गई हैं तो उसे एकदम डांटें नहीं लेकिन अपने बर्ताव में सख्ती जरूर ले आएं और उसे साफ-साफ बताएं कि आगे से ऐसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ध्यान रहे कि उसकी गलती का बार-बार जिक्र न करें।
- बच्चे की अटेंशन डायवर्ट करें। उसे खेल खिलाने पार्क आदि ले जाएं। उसकी एनजीर् का इस्तेमाल सही दिशा में नहीं होगा, तो वह भटक सकता है।
क्या करते हैं पैरंट्स अक्सर मांएं बच्चों से कहती हैं कि मेरे होते हुए तुम्हें काम करने की क्या जरूरत? बाद में जब बच्चा काम से जी चुराने लगता है तो उसे कामचोर कहने लगती हैं। कई मांएं लड़के-लड़की में भेद करते हुए कहती हैं कि यह काम लड़के नहीं करते, लड़कियां करती हैं। कई बार मांएं सजा के तौर पर काम कराती हैं, मसलन पढ़ नहीं रहे हो तो चलो सफाई करो, किचन में हेल्प करो आदि। बच्चे को लगातार सलाह भी देती रहती हैं, संभलकर गिर जाएगा, टूट जाएगा।
- बच्चे को काम बताएं और बार-बार टोकें नहीं कि गिर जाएगा या तुमसे होगा नहीं। बड़ों से भी चीजें गिर जाती हैं। बार-बार टोकने से बच्चे का आत्मसम्मान और इच्छा दोनों खत्म हो जाती हैं। इसके बजाय उसे प्रोत्साहित करें।
- बच्चे से पानी मंगवाएं। थोड़ा बड़ा होने पर चाय बनवाएं। सबसे सामने उसकी तारीफ करें कि वह कितनी अच्छी चाय बनाता है। इससे घर के कामों में उसकी दिलचस्पी बनने लगती है क्योंकि आज के वक्त में यह जरूरत बन गई है।
- दूसरों के सामने बार-बार शान से यह न कहें कि मैं अपने बच्चे से घर का कोई काम नहीं कराती। इससे उसे लगेगा कि घर का काम नहीं करना शान की बात है।
- बच्चे के सामने बैठकर बातें करें कि आपके पास कितना पैसा है और उसे कहां खर्च करना है। उसके साथ बैठकर प्लानिंग करें कि इस महीने तुम्हें नए कपड़े मिलेंगे और अगले महीने मैं खरीद लूंगा। इससे उसे आपकी कमाई का आइडिया रहेगा।
- अक्सर पैरंट्स अपनी कटौती कर बच्चे की सारी इच्छाएं पूरी करते हैं। हर बार ऐसा न करें, वरना उसकी डिमांड बढ़ती जाएगी और वह स्वार्थी हो सकता है।
- उसके सामने यह न करें कि तुम्हारा वह दोस्त फिजूलखर्च है, वह बड़े बाप का बेटा है आदि। बच्चों को अपने दोस्तों की बुराई पसंद नहीं आती। कुछ कहना भी है तो घुमाकर अच्छे शब्दों में कहें कि तुम्हारा दोस्त बहुत अच्छा है लेकिन कभी-कभी थोड़ा ज्यादा खर्च कर देता है, जो सही नहीं है।
- बच्चे की नींव इस तरह तैयार करें कि उसकी संगत भी अच्छी हो। उसके दोस्तों पर निगाह रखें और उन्हें अपने घर बुलाते रहें। बच्चे को ऐसे बच्चों के साथ ही दोस्ती करने को प्रेरित करें, जिनकी वैल्यू आपके परिवार के साथ मैच करें।
- अगर घर में बच्चे आपस में लड़ते हैं तो लड़ने दें। आखिर में जब दोनों शिकायत लेकर आएं तो बताएं कि जो भी बड़ा भाई/बहन है, वह खुद आपके आप आकर बात करेगा। दोनों में से किसी का भी पक्ष न लें।
- कोई दूसरा शिकायत लेकर आएं तो सुनें। उनसे कह सकते हैं कि मैं बच्चे को समझाऊंगी वैसे, बच्चे तो आपस में लड़ते ही रहते हैं। उनकी बातों में न आएं। इससे लड़ने के बावजूद बच्चों में दोस्ती बनी रहती है।
- बच्चे को सामने बिठाकर समझाएं कि अगर आप मारपीट करोगे तो कोई आपसे बात नहीं करेगा। कोई आपसे दोस्ती नहीं करेगा। आप उसे गलती के नतीजे बताएं।
- इसके लिए उसे सजा जरूर दें, लेकिन सजा मारपीट या डांट के बजाय दूसरी तरह से दी जाए जैसे कि मां आपसे दो घंटे बात नहीं करेंगी या पसंद का खाना नहीं मिलेगा आदि।
- बच्चे के साथ बैठकर हफ्ते भर का घर का मेन्यू तय करें कि किस दिन कब क्या बनेगा? इसमें एक-आध दिन नूडल्स जैसी चीजें शामिल कर सकते हैं। अगर बच्चा रूल बनाने में शामिल रहेगा तो वह उन्हें फॉलो भी करेगा। यह काम तीन-चार साल के बच्चे के साथ भी बखूबी कर सकते हैं।
- कभी-कभी बच्चे की पसंद की चीजें बना दें लेकिन हमेशा ऐसा न करें। पसंद की चीजों में भी ध्यान रहे कि पौष्टिक खाना जरूर हो।
- इस डर से कि खा नहीं रहा है, तो कुछ तो खा ले, नूडल्स, सैंडविच, पिज्जा जैसी चीजें बार-बार न बनाएं। वरना वह जान-बूझकर भूखा रहने लगेगा और सोचेगा कि आखिर में उसे पसंद की चीज मिल जाएगी। भूख लगेगी तो बच्चा नॉर्मल खाना खा लेगा।
- छोटे बच्चों को खाने में क्रिएटिविटी अच्छी लगती है इसलिए उनके लिए जैम, सॉस आदि से डिजाइन बना दें। सलाद भी अगर फूल, चिड़िया, फिश आदि की शेप में काटकर देंगे तो वह खुश होकर उसे भी खा लेगा।
- बच्चे टीचर्स की बातें मानते हैं। टीचर से बात करके टिफिन में ज्यादा और पौष्टिक खाना पैक कर सकते हैं, ताकि वह स्कूल में खा ले।
- बच्चे को हर वक्त जंक फूड खाने से न रोकें। उसके साथ बैठकर तय करें कि वह हफ्ते में एक दिन जंक फूड खा सकता है। इसके अलावा, दोस्तों के साथ पार्टी आदि के मौके पर इसकी छूट होगी।
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- नहीं खाना है', कहने के बजाय उसे समझाएं कि ज्यादा जंक फूड खाने के क्या नुकसान हो सकते हैं। लॉजिक देकर समझाने से वह खाने की जिद नहीं करेगा।
- पैरंट्स खुद भी जंक फूड न खाएं। इसके अलावा, जिस चीज के बारे में एक बार कह दिया कि इसे खाना गलत है, बाद में किसी बात से खुश होकर बच्चे को उसे खाने की छूट न दें।
साभार - नवभारत टाइम्स प्रेषक- रामनिवाश भोड,बाड़मेर
प्रख्यात चित्रकार माइकल एंजेलो से कई चित्रकार ईर्ष्या करते थे। उन्हीं में से एक चित्रकार ने सोचा कि मैं एक ऐसा चित्र बनाऊंगा जिसके आगे एंजेलो की कलाकृति फीकी पड़ जाएगी। यह सोचकर उसने काफी मेहनत से एक महिला का चित्र बनाया। उसने उस चित्र को एक ऊंचे स्थान पर रखा ताकि वहां से गुजरते लोग उसे आसानी से देख सकें। यद्यपि चित्र बहुत सुंदर था, फिर भी चित्रकार को अहसास हो रहा था कि इसमें कुछ कमी रह गई है। पर कमी कहां है और क्या है, यह जानने में वह खुद को असमर्थ पा रहा था। एक दिन एंजेलो उस रास्ते से जा रहे थे। उनकी नजर उस चित्र पर पड़ी। उन्हें वह चित्र बड़ा खूबसूरत लगा और उसमें जो कमी थी, वह भी उनके ध्यान में आ गई। एंजेलो चित्रकार के घर पहुंचे। चित्रकार ने एंजेलो को पहले कभी देखा नहीं था। उसने उनका स्वागत किया और आने का कारण पूछा। एंजेलो ने कहा, 'तुमने चित्र तो बहुत सुंदर बनाया है, पर मुझे इसमें एक कमी लग रही है। 'चित्रकार बोला, 'हां मुझे भी आभास हो रहा है कि कुछ कमी रह गई है।' एंजेलो ने कहा, 'जरा तुम अपनी कूची देना, मैं उस कमी को पूरा कर देता हूं।' चित्रकार बोला, 'मैने उसे बड़ी मेहनत से बनाया है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे हाथ से मेरा चित्र बिगड़ जाए।' एंजेलो ने कहा, ' विश्वास करो, मैं तुम्हारा चित्र खराब नहीं करूंगा।' उस चित्रकार से कूची लेकर एंजेलो ने चित्र की दोनों आंखों में दो बिंदी लगा दी। दरअसल चित्रकार आंखों में दो काली बिंदियां लगाना भूल गया था, जिस कारण चित्र अपूर्ण लग रहा था। अब वह चित्र सजीव प्रतीत होने लगा। उसका सौंदर्य बढ़ गया। उस चित्रकार के पूछने पर जब एंजेलो ने अपना नाम बताया तो चित्रकार के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने एंजेलो को बताया कि वह उनके बारे में क्या सोचता रहा था। उसने एंजेलो से क्षमा मांगी।
प्रेषक - जीवनलाल आंजना,बाड़मेर
भारतीय मनीषी हमेशा ही इच्छा और अनिच्छा के बारे में सोचता रहा है। वस्तुत: जो कुछ हम हैं, उसे एक लालसा में सिमटाया जा सकता है। यानी जो कुछ भी हम हैं, वह सब अपनी इच्छा के कारण से हैं। यदि हम दुखी हैं, यदि हम दासता में हैं, यदि हम अज्ञानी हैं, यदि हम अंधकार में डूबे हैं, यदि जीवन एक लंबी मृत्यु है, तो वह केवल इच्छा के कारण है।
क्यों है वह दुख? क्योंकि हमारी इच्छा पूरी नहीं हुई। इसलिए यदि आपको कोई इच्छा नहीं है, तो आप निराश कैसे होंगे? यदि आप निराश होना चाहते हैं, तो और अधिक इच्छा करें। बस, आप निराश हो जाएंगे। यदि आप और दुखी होना चाहते हैं, तो अधिक अपेक्षा करें, अधिक लालसा करें, और अधिक आकांक्षा से भरें और आप और भी अधिक दुखी हो जाएंगे। यदि आप सुखी होना चाहते हैं, तो फिर कोई इच्छा न करें। यही आंतरिक जगत के काम करने का गणित है। इच्छा ही दुख को उत्पन्न करती है। यदि लालसा असफल हो जाए, तो वह अनिवार्यत: दुख को निर्मित करती है। परंतु यदि इच्छा सफल भी हो जाए, तो भी वह दुख को ही जन्म देती है, क्योंकि तब आप जैसे ही सफल होते हैं, आपकी लालसा आगे बढ़ गई होती है।
इच्छा सदैव ही आपसे आगे रहती है। जहां कहीं भी आप होंगे, इच्छा आप से आगे होगी और आप कभी भी उस बिंदु को नहीं पहुंच पाएंगे, जहां आप और आपकी इच्छाएं मिल सकें। इच्छा का केंद सदा ही भविष्य में होता है, वर्तमान में नहीं। आप सदा ही वर्तमान में होते हैं और इच्छा सदा ही भविष्य में होती है। इच्छा क्षितिज की भांति होती है। आप देखते हैं कि बस कुछ ही मील दूर पर आकाश पृथ्वी को छू रहा है, परंतु आगे बढ़ें और जाकर देखें उस जगह जहां पर आसमान पृथ्वी को छूता है। जितना आप आगे जाते हैं, क्षितिज भी उतना ही आगे बढ़ जाता है।
वास्तव में, वह क्षितिज कहीं छूता नहीं है। वह छूना; वह संबंध की रेखा मात्र एक भ्रम है, झूठ है। इसलिए जब आप उस क्षितिज को खोजने जाएंगे तो आप उसे कहीं भी नहीं पाएंगे। वह सदैव वहां होगा, परंतु आप उससे कभी भी नहीं मिल जाएंगे। आप इसी भ्रम में रह सकते हैं कि क्षितिज वहां पर है, बस थोड़ा ही अंतर और पार करना है। आप सारी पृथ्वी का चक्कर लगा सकते हैं और अपने घर लौट सकते हैं, परंतु आप क्षितिज को कहीं भी नहीं पाएंगे। परंतु भ्रांति बनी रह सकती है।
इच्छा भी क्षितिज की भांति है। ऐसा प्रतीत होता है कि दूरी ज्यादा नहीं- जरा ही प्रयत्न और, जरा ही तेजी और, वह बिल्कुल पास ही है। परंतु आप वहां कभी नहीं पहुंचते। क्या आपने कभी भी कुछ भी इच्छा से पाया है या सदैव निराशा ही हाथ लगी है? राख हाथ में बचती है और तो कुछ भी नहीं। यदि आप इच्छा करना बंद कर दें, तब दौड़ नहीं होगी। किसी चीज के पीछे दौड़ नहीं, भीतर कोई गति नहीं, कोई लहर नहीं। मात्र एक शांत चेतना की झील, एक बिना लहर की शांत झील। परंतु क्या इसका तात्पर्य यह है कि जब इच्छा उठनी बंद हो जाती है, तो क्या सारे काम भी रुक जाते हैं? हमने कृष्ण को बहुत कुछ करते हुए देखा है। हमने बुद्ध को बहुत कुछ करते हुए देखा है, ज्ञान की उपलब्धि के बाद भी। तो फिर क्या आशय है सब कर्मों का? इसका मतलब सब कर्मों के कारण की समाप्ति नहीं है। इसका आशय है कारण का अभाव हो जाना। जब इच्छा नहीं होती है, तो सारे कर्म एक बिल्कुल भिन्न ही गुण को प्राप्त करते हैं।
जब कोई इच्छा नहीं होती, तो कर्म एक खेल हो जाता है, जिसमें कि कोई पागलपन नहीं होता, जिसके पीछे कोई विक्षिप्तता नहीं बचती, कोई खयाली पुल बांधने को नहीं होता। तब वह एक खेल हो जाता है।
प्रेषक - अश्विन p आंजना, उज्जैन {MP}
प्रेषक - अश्विन p आंजना, उज्जैन {MP}








