व्याख्यान - Positive V/S Negtive
सारे पैरंट्स की चाहत होती है कि वे अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दें। वे कोशिश भी करते हैं, फिर भी ज्यादातर पैरंट्स बच्चों के बिहेवियर और परफॉर्मेंस से खुश नहीं होते। उन्हें अक्सर शिकायत करते सुना जा सकता है कि बच्चे ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया... इसके लिए काफी हद तक पैरंट्स ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि अक्सर किस हालात में क्या कदम उठाना है, यह वे तय ही नहीं कर पाते। किस स्थिति में पैरंट्स को क्या करना चाहिए और क्यों :
1. बच्चा स्कूल जाने/पढ़ाई करने से बचे तो...
क्या करते हैं पैरंट्स पैरंट्स बच्चे पर गुस्सा करते हैं। मां कहती हैं कि तुमसे बात नहीं करूंगी। पापा कहते हैं कि बाहर खाने खिलाने नहीं ले जाऊंगा, खिलौना खरीदकर नहीं दूंगा। थोड़ा बड़ा बच्चा है तो पैरंट्स उससे कहते हैं कि कंप्यूटर वापस कर, मोबाइल वापस कर। तुम बेकार हो, तुम बेवकूफ हो। अपने भाई/बहन को देखो, वह पढ़ने में कितना अच्छा है और तुम बुद्धू। कभी-कभार थप्पड़ भी मार देते हैं।
क्या करना चाहिए
- वजह जानने की कोशिश करें कि वह पढ़ने से क्यों बच रहा है? कई वजहें हो सकती हैं, मसलन उसका आईक्यू लेवल कम हो सकता है, कोई टीचर नापसंद हो सकता है, वह उस वक्त नहीं बाद में पढ़ना चाहता हो आदि।
- बच्चा स्कूल जाने लगे तो उसके साथ बैठकर डिस्कस करें कि कितने दिन स्कूल जाना है, कितनी देर पढ़ना है आदि। इससे बच्चे को क्लियर रहेगा कि उसे स्कूल जाना है। बहाना नहीं चलेगा। उसे यह भी बताएं कि स्कूल में दोस्त मिलेंगे। उनके साथ खेलेंगे।
- अगर स्कूल से उदास लौटता है तो प्यार से पूछें कि क्या बात है? क्या टीचर ने डांटा या साथियों से लड़ाई हुई। अगर बच्चा बताए कि फलां टीचर या बच्चा परेशान करता है तो उससे कहें कि हम स्कूल जाकर बात करेंगे। स्कूल जाकर बात करें भी लेकिन सीधे टीचर को दोष न दें।
- जो बच्चे हाइपरऐक्टिव होते हैं, उन्हें अक्सर टीचर शैतान मानकर इग्नोर करने लगती हैं। ऐसे में टीचर से रिक्वेस्ट करें कि बच्चे को ऐक्टिविटीज में शामिल करें और उसे मॉनिटर जैसी जिम्मेदारी दें। इससे वह जिम्मेदार बनता है।
- जिस वक्त वह नहीं पढ़ना चाहता, उस वक्त उसे मजबूर न करें, वरना वह जिद्दी हो जाएगा और पढ़ाई से बचने लगेगा। थोड़ी देर बाद फिर से पढ़ने को कहें।
- उसके पास बैठें और उसकी पढ़ाई में खुद को शामिल करें। उससे पूछें कि आज क्लास में क्या हुआ? बच्चा थोड़ा बड़ा है तो आप उससे कह सकते हैं कि तुम मुझे यह चीज सिखाओ क्योंकि यह तुम्हें अच्छी तरह आता है। वह खुश होकर सिखाएगा और साथ ही साथ खुद भी सीखेगा।
- छोटे बच्चों को किस्से-कहानियों के रूप में काफी कुछ सिखा सकते हैं। उसे बातों-बातों और खेल-खेल में सिखाएं जैसे किचन में आलू गिनवाएं, बिंदी से डिजाइन बनवाएं आदि। पढ़ाई को थोड़ा दिलचस्प तरीके से पेश करें। हर बच्चे की पसंद-नापसंद होती है। उसकी पसंद के सब्जेक्ट पर ज्यादा फोकस करें।
- कभी-कभी उसके फ्रेंड्स को घर बुलाकर उनको साथ पढ़ने बैठाएं। इससे पढ़ाई में उसका मन लगेगा।
- बच्चा आप पर चीखे-चिल्लाए तो भी आप उस पर चिल्लाएं नहीं। उस वक्त छोड़ दें, लेकिन खुद को पूरी तरह नॉर्मल भी न दिखाएं, वरना वह सोचेगा कि वह कुछ भी करेगा, आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बाद में जब उसका गुस्सा शांत हो जाए तो बैठकर बात करें कि इस तरह बात करना आपको बुरा लगा और इससे उसके दोस्त, टीचर सभी उसे बुरा बच्चा मानेंगे।
- उसे टाल दें। इसे लेकर बार-बार कुरेदे नहीं। अगर बार-बार बोलेंगे तो उसकी ईगो हर्ट होगी। हां, कहानी के जरिए बता सकते हैं कि एक बच्चा था, जो गंदी बातें करता था। सबने उससे दोस्ती खत्म कर ली आदि।
- बच्चे के सामने गाली या खराब भाषा का इस्तेमाल न करें। वह जो सुनेगा, वही सीखेगा। उसे बताएं कि ऐसी भाषा तो गलत लोग बोलते हैं। उनका बैकग्राउंड और वर्क कल्चर बिल्कुल अलग है और तुम्हारा बिल्कुल अलग।
- पांच-छह साल से बड़ा बच्चा जान-बूझकर पैरंट्स की मानहानि करने और खुद को पावरफुल दिखाने के लिए बोलता है कि आप अच्छे नहीं हैं। पैरंट्स भी बहुत आसानी से हर्ट हो जाते हैं। इसके बजाय आप कह सकते हैं कि तुम इतने अनलकी हो कि तुम्हारी मां गंदी है। इससे उसका पावरफुल वाला अहसास खत्म होगा।
- चोरी करने पर सजा जरूर दें, लेकिन सजा मार-पीट के रूप में नहीं बल्कि बच्चे को पसंदीदा प्रोग्राम नहीं देखने देना, उसे आउटिंग पर नहीं ले जाना, खेलने नहीं देना जैसी सजा दे सकते हैं। जो चीज उसे पसंद है, उसे कुछ देर के लिए उससे दूर कर दें।
- बच्चे का बैग रेग्युलर चेक करें, लेकिन ऐसा उसके सामने न करें। उसमें कोई भी नई चीज नजर आए तो पूछें कि कहां से आई? बच्चा झूठ बोले तो प्यार से पूछें। उसकी बेइज्जती न करें, न ही उसके साथ मारपीट करें। चीज लौटाने को कहें लेकिन पूरी क्लास के सामने माफी न मंगवाएं। बच्चा अगर पांच साल से बड़ा है, तब तो बिल्कुल नहीं। वह क्लास के सामने बोल सकता है कि यह चीज मुझे मिल गई थी।
- उसे अकेले में सख्ती से जरूर समझाएं कि उसने गलत किया। चोरी बुरी बात है। अगली बार ऐसा नहीं होना चाहिए।
- झूठी पनाह नहीं देनी चाहिए। अगर कोई कहता है कि आपके बच्चे ने चोरी की है तो यह न कहें कि वह ऐसा नहीं कर सकता। इससे उसे शह मिलती है। कहें कि हम अकेले में पूछेंगे। सबके सामने न पूछें लेकिन अकेले में पूरी इंक्वायरी करें।
- बच्चे को मोरल एजुकेशन दें। उसे बताएं कि आप कोई चीज उठाकर लाएंगे तो आप टेंशन में रहेंगे कि कोई देख न ले। इस टेंशन से बचने का अच्छा तरीका है कि चोरी न की जाए।
- पैरंट्स की जिम्मेदारी है कि वे बच्चे को जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध कराएं। इससे उसका झुकाव चोरी की ओर नहीं होगा।
क्या करना चाहिए
- बच्चा झूठ बोले तो ओवर-रिएक्ट न करें और सबसे सामने न डांटें। न ही उसे सही-गलत का पाठ पढ़ाएं। इसके बजाय उसे उदाहरण देकर उस काम के नेगेटिव पक्ष बताएं। उदाहरण में खुद को सामने रखें - मसलन, मैं जब छोटा था तो क्लास बंक करता था और घर में झूठ बोलता था लेकिन बाद में मैं पढ़ाई में पीछे रह गया या बाद में ढेर सारा काम करना पड़ता था। साथ ही, झूठ बोलने की टेंशन अलग होती थी। इस तरह से बात करने से वह खुद को कठघरे में खड़ा महसूस नहीं करेगा।
- खुद में सच सुनने की हिम्मत पैदा करें। हालात का सामना करें। घर में ऐसा माहौल रखें कि बच्चा बड़ी से बड़ी गलती के बारे में बताने से डरे नहीं। बच्चा झूठ तभी बोलता है, जब उसे मालूम होता है कि सच कोई सुनेगा नहीं। उसके भरोसा दिलाएं कि उसकी गलती माफ हो सकती है।
- बच्चा झूठ बोलना मां-बाप से ही सीखता है, जबकि 95 फीसदी मामलों में झूठ बोले बिना काम चल सकता है।
क्या करना चाहिए
- बच्चे को हमेशा रोकें-टोकें नहीं। हर बात के लिए हां करना गलत है तो न करना भी सही नहीं है। 'डोंट डू दिस, डोंट टू दैट' का रवैया सही नहीं है। जो बात मानने वाली है, उसे मान लेना चाहिए। अगर उसकी कुछ बातें मान ली जाएंगी तो वह जिद कम करेगा। मसलन कभी-कभी खिलौना दिलाना, उसकी पसंद की चीजें खिलाना जैसी बातें मान सकते हैं।
- ध्यान रहे कि अगर एक बार इनकार कर दिया तो फिर बच्चे की जिद के सामने झुककर हां न करें। बच्चे को अगर यह मालूम हो कि मां या पापा की 'हां' का मतलब 'हां' और 'ना' का मतलब 'ना' है तो वह जिद नहीं करेगा।
- किसी भी मसले पर मां-पापा दोनों की सहमति होनी जरूरी है। ऐसा न हो कि एक इनकार करे और दूसरा उस बात के लिए मान जाए। अगर एक सख्त है और दूसरा नरम है तो बच्चा फायदा उठाता है। जो बात नहीं माननी, उसके लिए बिल्कुल साफ इनकार करें, जोर देकर करें और दोनों मिलकर करें। अगर घर में बाकी लोग हैं तो वे भी बच्चे की तरफदारी न करें।
- उसे कमजोर बनकर न दिखाएं, न ही उसके सामने रोएं। इससे बच्चा ब्लैकमेलिंग सीख लेता है और बार-बार इस हथियार का इस्तेमाल करने लगता है।
- यह न कहें कि अगर तुम यह काम करोगे तो हम वैसा करेंगे, मसलन अगर तुम होमवर्क पूरा करोगे तो आइसक्रीम खाने चलेंगे। उससे कहें कि पहले होमवर्क पूरा कर लो, फिर आइसक्रीम खाने चलेंगे। इससे उसे पता रहेगा कि अपना काम करना जरूरी है। ऐसे में फिजूल जिद बेकार है।
- बहस की बजाय कई बार समझौता कर सकते हैं कि चलो तुम थोड़ी देर कंप्यूटर पर गेम्स खेल लो और फिर थोड़ी देर पढ़ाई कर लेना। इससे बच्चा दुनिया के साथ भी नेगोशिएट करना सीख जाता है। हालांकि ऐसा हर बार न हो, वरना बच्चे में ज्यादा चालाकी आ जाती है।
- यह भी देखें कि बच्चा जिद कर रहा है या आप जिद कर रहे हैं क्योंकि कई बार पैरंट्स भी बच्चे की किसी बात को लेकर ईगो इशू बना लेते हैं। यह गलत है।
- बच्चे से रिमोट छीनकर बंद न करें और न ही अपनी पसंद का प्रोग्राम लगाकर देखने बैठ जाएं। अपना टीवी देखना कम करें। अक्सर बच्चे स्कूल से आते हैं तो मां टीवी देखती मिलती है।
- बच्चे की पसंद के हर प्रोग्राम में कमी न निकालें कि यह खराब है। उससे पूछें कि वह जो देख रहा है, उससे उसने क्या सीखा और हम भी वह प्रोग्राम देखेंगे।
- अखबार देखें और बच्चे के साथ बैठकर तय करें कि वह कितने बजे, कौन-सा प्रोग्राम देखेगा और आप कौन-सा प्रोग्राम देखेंगे। इससे बच्चा सिलेक्टिव हो जाता है।
- उसके कमरे में टाइम टेबल लगा दें कि वह किस वक्त टीवी देखेगा और कब गेम्स खेलेगा? अगर वह एक दिन ज्यादा देखता है तो निशान लगा दें और अगले दिन कटौती कर दें।
- विडियो गेम्स आदि के लिए हफ्ते में कोई खास दिन या वक्त तय करें।
- आप खुद भी हर वक्त फोन पर बिजी न रहें, वरना बच्चे से इनकार करना मुश्किल होगा। हां, उसे मोबाइल देते वक्त ही मोबाइल बिल की लिमिट तय करें कि महीने में उसे इतने रुपए का ही मोबाइल खर्च मिलेगा। दूसरों को दिखाने के लिए उसे महंगा फोन न दिलाएं।
- उसे बताएं कि ज्यादा लंबी बातचीत से शरीर को क्या नुकसान हो सकते हैं? इतना वक्त खराब करने से पढ़ाई का नुकसान हो सकता है आदि। इसी तरह बताएं कि चैटिंग करें लेकिन बाद में।
- अकेले में बच्चे का मोबाइल चेक करें। उसमें गलत एमएमएस नजर आएं या ज्यादातर मेसेज डिलीट मिलें तो कुछ गड़बड़ हो सकती है।
- कंप्यूटर ऐसी जगह पर रखें, जहां से उस पर सबकी निगाह पड़ती हो। इससे पता चलता रहेगा कि वह किस वेबसाइट पर क्या कर रहा है। इंटरनेट की हिस्ट्री चेक करें। कंप्यूटर पर बच्चे को फोटोशॉप या पेंट आदि सिखाएं। इससे वह कंप्यूटर का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकेगा।
- अगर पता लग जाए कि बच्चे में बुरी आदतें पड़ गई हैं तो उसे एकदम डांटें नहीं लेकिन अपने बर्ताव में सख्ती जरूर ले आएं और उसे साफ-साफ बताएं कि आगे से ऐसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ध्यान रहे कि उसकी गलती का बार-बार जिक्र न करें।
- बच्चे की अटेंशन डायवर्ट करें। उसे खेल खिलाने पार्क आदि ले जाएं। उसकी एनजीर् का इस्तेमाल सही दिशा में नहीं होगा, तो वह भटक सकता है।
क्या करते हैं पैरंट्स अक्सर मांएं बच्चों से कहती हैं कि मेरे होते हुए तुम्हें काम करने की क्या जरूरत? बाद में जब बच्चा काम से जी चुराने लगता है तो उसे कामचोर कहने लगती हैं। कई मांएं लड़के-लड़की में भेद करते हुए कहती हैं कि यह काम लड़के नहीं करते, लड़कियां करती हैं। कई बार मांएं सजा के तौर पर काम कराती हैं, मसलन पढ़ नहीं रहे हो तो चलो सफाई करो, किचन में हेल्प करो आदि। बच्चे को लगातार सलाह भी देती रहती हैं, संभलकर गिर जाएगा, टूट जाएगा।
- बच्चे को काम बताएं और बार-बार टोकें नहीं कि गिर जाएगा या तुमसे होगा नहीं। बड़ों से भी चीजें गिर जाती हैं। बार-बार टोकने से बच्चे का आत्मसम्मान और इच्छा दोनों खत्म हो जाती हैं। इसके बजाय उसे प्रोत्साहित करें।
- बच्चे से पानी मंगवाएं। थोड़ा बड़ा होने पर चाय बनवाएं। सबसे सामने उसकी तारीफ करें कि वह कितनी अच्छी चाय बनाता है। इससे घर के कामों में उसकी दिलचस्पी बनने लगती है क्योंकि आज के वक्त में यह जरूरत बन गई है।
- दूसरों के सामने बार-बार शान से यह न कहें कि मैं अपने बच्चे से घर का कोई काम नहीं कराती। इससे उसे लगेगा कि घर का काम नहीं करना शान की बात है।
- बच्चे के सामने बैठकर बातें करें कि आपके पास कितना पैसा है और उसे कहां खर्च करना है। उसके साथ बैठकर प्लानिंग करें कि इस महीने तुम्हें नए कपड़े मिलेंगे और अगले महीने मैं खरीद लूंगा। इससे उसे आपकी कमाई का आइडिया रहेगा।
- अक्सर पैरंट्स अपनी कटौती कर बच्चे की सारी इच्छाएं पूरी करते हैं। हर बार ऐसा न करें, वरना उसकी डिमांड बढ़ती जाएगी और वह स्वार्थी हो सकता है।
- उसके सामने यह न करें कि तुम्हारा वह दोस्त फिजूलखर्च है, वह बड़े बाप का बेटा है आदि। बच्चों को अपने दोस्तों की बुराई पसंद नहीं आती। कुछ कहना भी है तो घुमाकर अच्छे शब्दों में कहें कि तुम्हारा दोस्त बहुत अच्छा है लेकिन कभी-कभी थोड़ा ज्यादा खर्च कर देता है, जो सही नहीं है।
- बच्चे की नींव इस तरह तैयार करें कि उसकी संगत भी अच्छी हो। उसके दोस्तों पर निगाह रखें और उन्हें अपने घर बुलाते रहें। बच्चे को ऐसे बच्चों के साथ ही दोस्ती करने को प्रेरित करें, जिनकी वैल्यू आपके परिवार के साथ मैच करें।
- अगर घर में बच्चे आपस में लड़ते हैं तो लड़ने दें। आखिर में जब दोनों शिकायत लेकर आएं तो बताएं कि जो भी बड़ा भाई/बहन है, वह खुद आपके आप आकर बात करेगा। दोनों में से किसी का भी पक्ष न लें।
- कोई दूसरा शिकायत लेकर आएं तो सुनें। उनसे कह सकते हैं कि मैं बच्चे को समझाऊंगी वैसे, बच्चे तो आपस में लड़ते ही रहते हैं। उनकी बातों में न आएं। इससे लड़ने के बावजूद बच्चों में दोस्ती बनी रहती है।
- बच्चे को सामने बिठाकर समझाएं कि अगर आप मारपीट करोगे तो कोई आपसे बात नहीं करेगा। कोई आपसे दोस्ती नहीं करेगा। आप उसे गलती के नतीजे बताएं।
- इसके लिए उसे सजा जरूर दें, लेकिन सजा मारपीट या डांट के बजाय दूसरी तरह से दी जाए जैसे कि मां आपसे दो घंटे बात नहीं करेंगी या पसंद का खाना नहीं मिलेगा आदि।
- बच्चे के साथ बैठकर हफ्ते भर का घर का मेन्यू तय करें कि किस दिन कब क्या बनेगा? इसमें एक-आध दिन नूडल्स जैसी चीजें शामिल कर सकते हैं। अगर बच्चा रूल बनाने में शामिल रहेगा तो वह उन्हें फॉलो भी करेगा। यह काम तीन-चार साल के बच्चे के साथ भी बखूबी कर सकते हैं।
- कभी-कभी बच्चे की पसंद की चीजें बना दें लेकिन हमेशा ऐसा न करें। पसंद की चीजों में भी ध्यान रहे कि पौष्टिक खाना जरूर हो।
- इस डर से कि खा नहीं रहा है, तो कुछ तो खा ले, नूडल्स, सैंडविच, पिज्जा जैसी चीजें बार-बार न बनाएं। वरना वह जान-बूझकर भूखा रहने लगेगा और सोचेगा कि आखिर में उसे पसंद की चीज मिल जाएगी। भूख लगेगी तो बच्चा नॉर्मल खाना खा लेगा।
- छोटे बच्चों को खाने में क्रिएटिविटी अच्छी लगती है इसलिए उनके लिए जैम, सॉस आदि से डिजाइन बना दें। सलाद भी अगर फूल, चिड़िया, फिश आदि की शेप में काटकर देंगे तो वह खुश होकर उसे भी खा लेगा।
- बच्चे टीचर्स की बातें मानते हैं। टीचर से बात करके टिफिन में ज्यादा और पौष्टिक खाना पैक कर सकते हैं, ताकि वह स्कूल में खा ले।
- बच्चे को हर वक्त जंक फूड खाने से न रोकें। उसके साथ बैठकर तय करें कि वह हफ्ते में एक दिन जंक फूड खा सकता है। इसके अलावा, दोस्तों के साथ पार्टी आदि के मौके पर इसकी छूट होगी।
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- नहीं खाना है', कहने के बजाय उसे समझाएं कि ज्यादा जंक फूड खाने के क्या नुकसान हो सकते हैं। लॉजिक देकर समझाने से वह खाने की जिद नहीं करेगा।
- पैरंट्स खुद भी जंक फूड न खाएं। इसके अलावा, जिस चीज के बारे में एक बार कह दिया कि इसे खाना गलत है, बाद में किसी बात से खुश होकर बच्चे को उसे खाने की छूट न दें।
साभार - नवभारत टाइम्स प्रेषक- रामनिवाश भोड,बाड़मेर
3 comments:
Aapkey tips sey hmey bhut help mili hey thanks to your treatment ..
Such A Great Article Sir. Its Help In many aspects of human family life.
#विफलता का मतलब यह है की आपको पहले अच्छा करने का एक और मौका मिला है।"
पैरेंट होने के नाते आपकी पहली जिम्मेदारी बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के साथ सभ्य और संस्कारवान नागरिक बनाने की है।दरअसल आज के parents ने ही उनके दिमाग में भर दिया है कि परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं आये तो जीवन में अच्छी सफलता नहीं मिलने वाली।😕😕
http://gyanbazar.blogspot.com/2017/05/Tips-for-parents-to-reduce-child-result-stress-and-fear-in-hindi.html
बहुत अच्छा लेख है, कृपया बड़े परिवार जैसे जिसमे दादा दादी, मां, पिता और छोटा भाई बहन है उसके उदाहरण में भी कुछ सुझाव बताये, मेरे परिवार में यही स्थिति है, मैं और मेरी पत्नी जॉब करते है और बच्चे दिन में अपने दादी दादा जी के साथ रहते हैं, और जिद और बुरे व्यवहार से मेरी 6 वर्ष की बेटी काफी परेशान करती है। मेरा 2 वर्ष का बेटा भी उसे देखकर बुरा व्यवहार करता है, कृपया सुझाव दें
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